अमित:
दसवीं कक्षा में एक कविता पढ़ी थी, मृत्तिका - यानि मिट्टी। तब किताबों में झाँककर उस कविता के शब्दों के अर्थ टटोलने की कोशिश की थी, पर आज पूरी कविता का अर्थ मिल गया किसी की नन्हीं अंगुलियों में। उन अंगुलियों के प्रति स्नेह भी, उन्हें आशीर्वाद भी और सीख देने के लिये प्रणाम् भी।
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मृत्तिका
मैं तो मात्र मृत्तिका हूँ -
जब तुम
मुझे पैरों से रौंदते हो
तथा हल के फाल से विदीर्ण करते हो
तब मैं -
धन-धान्य बनकर मातृरूपा हो जाती हूँ।
जब तुम
मुझे हाथों से स्पर्श करते हो
तथा चाक पर चढ़ाकर घुमाने लगते हो
तब मैं -
कुंभ और कलश बनकर
जल लाती तुम्हारी अंतरंग प्रिया हो जाती हूँ।
जब तुम मुझे मेले में मेरे खिलौने रूप पर
आकर्षित होकर मचलने लगते हो
तब मैं -
तुम्हारे शिशु हाथों में पहुंच प्रजारूपा हो जाती हूँ।
पर जब भी तुम
अपने पुरुषार्थ-पराजित स्वत्व से मुझे पुकारते हो
तब मैं -
अपने ग्राम्य देवत्व के साथ चिन्मयी शक्ति हो जाती हूँ
(प्रतिमा बन तुम्हारी आराध्या हो जाती हूं)
विश्वास करो
यह सबसे बड़ा देवत्व है, कि -
तुम पुरुषार्थ करते मनुष्य हो
और मैं स्वरूप पाती मृत्तिका।
(नरेश मेहता)
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Saturday, February 13, 2010
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ati sundar bhaav marmsparshi shabad ,bibm ati uttam manjul bhatnagar
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ReplyDeletethanks for this poem it helps in my holiday homework thanks thanks thanks thanks thanks thanks
ReplyDeletethanks again
ReplyDeleteअलंकार कौन सा है मै तो मात्र मृतिका हु में
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